इश्क का एक नया रूप


 सौदा हुआ दो अजनबीयों में 

साथ गुजारेंगे वक़्त तब तक 

ज़ब तक हमसफर ना मिल जाये 

इश्क की बातें होंगी वफ़ा होगी 

पर जो ना होगा वो है बंधन और वादे 


किसको थी खबर वक़्त ऐसा गुजरा की 

अब दोनों को आदत हो गयी एक दूसरे की 

हां मना मुलाक़ाते अधूरी रह गयी 

कुछ आज में तो कुछ कल में,


और सौदे के मुताबित दोनों का साथ खत्म होने को आ गया 

पर इस दिल को कौन समझाये नहीं है वो अपना जो जा रहा 

वो एक वक़्त था जो कुछ वक़्त को ही साथ था 

इश्क नहीं करना था, पर ये कैसे बंधन बाँध गया वो 

जो आजाद तो कर के जा रहा..

पर मैं आजाद हो नहीं पा रहा


मन में आस और काश लिए सोच रहा मैं 

की बस कह दे इश्क हो गया है अब तुझसे 


मैं हुँ जीवन भर साथ तेरे 



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